परमात्मा और योग का संबंध
परमात्मा और योग का संबंध |
इतनी ही तो साधना है, जिसे पूर्व मनीषियों ने देश, काल और पात्र भेद के अनुसार अपनी-अपनी भाषा शैली में व्यक्त किया है। लौकिक सुख तथा पारलौकिक आनन्द की प्राप्ति के एकमात्र स्रोत परमात्मा की शोध का जो संकलन वेदों में है, वही उपनिषदों में उद्गीथ विद्या, संवर्ण विद्या, मधुविद्या, आत्मविद्या, दहर विद्या, भूमाविद्या, मन्थविद्या, न्यासविद्या इत्यादि नामों से अभिहित किया गया। इसी को महर्षि पतंजलि के योगदर्शन में योग की संज्ञा दी गई।
योग है क्या?
महर्षि कहते हैं, अथ योगानुशासनम्। योग एक अनुशासन है। हम किसे अनुशासित करें-परिवार को, देश को, पास-पड़ोस को? सूत्रकार कहते हैं नहीं योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। किसी ने परिश्रम कर निरोध कर लिया तो उससे लाभ? तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्। उस समय द्रष्टा यह आत्मा अपने सहज स्वरूप परमात्मा में स्थित हो जाता है।क्या पहले वह स्थित नहीं था?
महर्षि के अनुसार वृत्तिसारूप्यमितरत्र। दूसरे समय द्रष्टा का वैसा ही स्वरूप है, जैसी उसकी वृत्तियां सात्विक, राजसी अथवा तामस हैं, क्लिष्ट, अक्लिष्ट इत्यादि। इन वृत्तियों का निरोध कैसे हो? अभ्यासवैराग्याभ्यां तत्रिरोधः। चित्त को लगाने के लिए जो प्रत्यन किया जाता है उसका नाम अभ्यास है। देखी-सुनी संपूर्ण वस्तुओं में राग का त्याग वैराग्य है। अभ्यास करें तो किसका करें?'क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः' क्लेश, कर्म, कर्मों के संग्रह और परिणाम भोग से जो अतीत है वह पुरुष विशेष ईश्वर है। वह काल से भी परे है, गुरुओं का भी गुरु है। उसका वाचक नाम 'ओम्' है। 'तज्ज्पस्तदर्थलाभवनम्' उस ईश्वर के नाम प्रणव का जप करो, उसके अर्थस्वरूप उस ईश्वर के स्वरूप का ध्यान करो, अभ्यास इतने में ही करना है। इस अभ्यास के प्रभाव से अन्तराय शांत हो जाएंगे, क्लेशों का अन्त हो जाएगा और द्रष्टा स्वरूप में स्थिति तक की दूरी तय कर लेगा।
इन समस्त प्रकरण में योग के लिए वृत्तियों का संघर्ष झेलना है। यह शरीर का क्रिया कलाप, इसकी विभिन्न मुद्राएं योग कब से और कैसे हो गईं? कोई दिन-रात लगातार चौबीसों घंटे योग के नाम पर प्रचलित इन आसनों को कर भी तो नहीं सकता जबकि गीता के अनुसार योग सतत् चलने वाली प्रक्रिया है और महर्षि पतंजलि के अनुसार, 'सतु दीर्घकाल नैरन्तर्य सत्काराऽऽसेवितो दृढभूमिः' योग का यह अभ्यास बहुत काल तक लगातार श्रद्धापूर्वक करते रहने से दृढ़ अवस्थावाला होता है।
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