गीता का रहस्य
गीता का रहस्य |
इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि गीता चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठ कर पुस्तक पढ़ने लगते हैं और यह संसारी लोगों के लिए कोई प्रारंभिक शिक्षा है। इसमें यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में उन्होंने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।
श्रीमद्भगवद्गीता हमारे धर्मग्रंथों का एक अत्यंत तेजस्वी और निर्मल हीरा है। भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोंक्त व्यवहार के साथ संयोग करा देने वाला और इसके द्वारा संसार से त्रस्त मनुष्य को शांति देकर उसे निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगानेवाला गीता के समान बालबोध ग्रंथ, समस्त संसार के साहित्य में भी नहीं मिल सकता। केवल काव्य की ही दृष्टि से यदि इसकी परीक्षा की जाए तो भी यह ग्रंथ उत्तम काव्यों में गिना जा सकता है; क्योंकि इसमें आत्मज्ञान के अनेक गूढ़ सिद्धांत ऐसी प्रासादिक भाषा में लिखे गए हैं, इसमें ज्ञानयुक्त भक्तिरस भी भरा पड़ा है। जिस ग्रंथ में समस्त वैदिक धर्म का सार स्वयं श्रीकृष्ण भगवान् की वाणी से संगृहित किया है उसकी योग्यता का वर्णन कैसे किया जाए ?
‘‘प्रत्यक्ष अनुभव से यह स्पष्ट दिखाई देता है, कि श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान युग में भी उतनी ही नव्यतापूर्ण एवं स्फूर्तिदात्री है, जितनी की महाभारत में समाविष्ट होते समय भी। गीता के संदेश का प्रभाव केवल दार्शनिक अथवा विद्वत्वर्चा का विषय नहीं है, अपितु आचार-विचारों के क्षेत्र में भी वह सदैव जीता-जागता प्रतीत होता है। एक राष्ट्र तथा संस्कृति का पुनरुज्जीवन, गीता का उपदेश, करता रहा है। संसार के अत्युच्च शास्त्रविषयक ग्रंथों में गीता का अविरोध से समावेश हुआ है। -
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