Saturday, December 5, 2015

श्री कृष्ण परमधाम

श्री कृष्ण  परमधाम


 श्री कृष्ण परमधाम

भगवान राम और श्री कृष्ण विष्णु के अवतार हैं यह बात शास्त्रों और पुराणों में लिखा है। लेकिन राम पृथ्वी त्याग करने के बाद विष्णु में लीन हो गए लेकिन कृष्ण का अपना एक लोक है जिसे गोलोक कहते हैं। गीता और ब्रह्मसंहिता में गोलोक के सौन्दर्य और नजारों का वर्णन किया गया है।

गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावकः। यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।

अर्थात्, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्रमा द्वारा, न ही अग्नि या बिजली द्वारा प्रकाशित होता है। जो लोग यहां पहुंच जाते हैं वह इस भौतिक जगत में फिर कभी लौटकर नहीं आते हैं।

गोलोक में प्रकाश के लिए न तो चन्द्रमा की आवश्यक्ता है न सूर्य की। यहां तो परब्रह्म की ज्योति प्रकाशमान है, इन्हीं की ज्योति से गोलोक प्रकाशित है। यहां पर राधा और कृष्ण नित्य विराजमान रहते हैं और कृष्ण की बंशी की मधुर तान से संपूर्ण लोक आनंदित और स्वस्थ रहता है।

मंद-मंद सुगंधित हवाएं चलती हैं। भूख-प्यास, रोग, दोष, चिंता का यहां कहीं नामोनिशान नहीं है। गौएं और श्री कृष्ण की सखी एवं सखाएं इनकी सेवा करके आनंदित रहते हैं। यहां न किसी को स्वामी भाव का अभिमान है और न किसी को दास भाव की वेदना है।

इसलिए कहा गया है कि मनुष्य जिसे भगवान ने मध्य लोक यानी पृथ्वी पर भेजा है उसे गोलोक की प्राप्ति के लिए श्री कृष्ण की भक्ति करनी चाहिए। जो इनकी भक्ति भावना से विमुख होता है वह अधोगति को प्राप्त होता है यानी नीच योनियों में अर्थात कीट, पतंग और पशु-पक्षियों के रूप में जन्म लेकर दुःख भोगते हैं।

हे अर्जुन! जिस परम पद को प्राप्त होकर मनुष्य लौटकर संसार में नहीं आते उस स्वयं प्रकाश परम पद को न सूर्य प्रकाशित कर सकता है, न चन्द्रमा और न अग्नि ही, वही मेरा परम धाम है ॥6॥ गीता अध्याय 15, श्लोक

हे अर्जुन! ब्रह्मलोक सहीत सभी लोक पुनरावर्ती हैं, परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल द्वारा सीमित होने से अनित्य हैं॥16॥ गीता अध्याय 8, श्लोक 16 

हे अर्जुन! अव्यक्त 'अक्षर' इस नाम से कहा गया है, उसी अक्षर नामक अव्यक्त भाव को परमगति कहते हैं तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते, वह मेरा परम धाम है॥21॥ गीताअध्याय 8, श्लोक 21.

* परमधाम *

(1) यहां के रहिवासी श्रीकृष्ण हैँ।

(2) यहां से पुर्नजन्म पतन नहीँ हैँ।

(3) यहां का सुख नित्य अक्षय हैँ।

(4) ये स्थान चैतन के उपर हैँ।

(5) परमधाम सर्वोच्च यानी सबके उपर हैँ।

(6) परमधाम स्वंयम् प्रकाशित हैँ।

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