Saturday, December 12, 2015

दैनिक प्रार्थना

दैनिक प्रार्थना

दैनिक प्रार्थना

हे परम प्रियतम पूर्णतम पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण। तुम से विमुख होने के कारण अनादिकाल से हमने अनन्तानंत दुःख पाए एवं पा रहे हैं। पाप करते करते अन्तःकरण इतना मलिन हो चुका है कि रसिकों द्वारा यह जानने पर भी कि तुम अपनी भुजाओं को पसारे अपनी वात्सल्यमयी दृष्टि से हमारी प्रतीक्षा कर रहे हो, तुम्हारी शरण में नहीं आ पाता।
हे अशरण -शरण! तुम्हारी कृपा के बिना तुम्हें कोई पा भी नहीं सकता। ऐसी स्थिति में, हे अकारण करूण, पतितपावन श्रीकृष्ण! तुम अपनी अहैतुकी कृपा से ही हमको अपना लो।
हे करूणासागर! हम भुक्ति -मुक्ति आदि कुछ नहीं माँगते, हमें तो केवल तुम्हारे निष्काम प्रेम की ही एकमात्र चाह है।
हे नाथ! अपने विरद की ओर देखकर इस अधम को निराश न करो।
हे जीवनधन! अब बहुत हो चुका, अब तो तुम्हारे प्रेम के बिना यह जीवन मृत्यु से भी अधिक भयानक है। अतएव
प्रेमभिक्षां देहि, प्रेमभिक्षां देहि, प्रेम भिक्षां देहि।
साकेत बिहारी श्रीराघवेन्दर सरकार की जय।
वृन्दावन विहारी श्री यादवेनदर सरकार की जय।
श्रीमद् सदगुरू सरकार की जय।
जय जय श्री राधे

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