Thursday, December 17, 2015

कृष्ण भक्ती

कृष्ण भक्ती

कृष्ण भक्ती
भगवान श्रीकृष्ण के भक्त रसखान एक मुसलमान व्यक्ति थे। एक बार वो अपने उस्ताद के साथ मक्का मदीना, हज पर जा रहे थे, 
उनके उस्ताद ने कहा:- "देखो हिन्दुओं का तीर्थ स्थल वृन्दावन आने वाला है, वहाँ एक कालिया नाग रहता है।
मैंने सुना है नाग वृंदावन आने बाले यात्रियों को डस लेता है। इसलिये तुम सम्भल कर चलना, इधर-उधर ताक-झाँक नहीं करना, सीधे मेरे पीछे-पीछे चलना। उस्तादजी कि बातें सुनकर रसखान को कालिया नाग देखने उत्सुकता होने लगी। उन्होंने सुन रखा था वृंदावन कृष्ण धाम है, फिर यहाँ नाग लोगों को कैसे डँस सकता है?
यह सोचते हुए वो चले जा रहे थे कि बिहारीजी ने अपनी लीला प्रारम्भ करना शुरू कर दिया। प्रभु ने सोचा, देखूँ ये कब तक बिना इधर-उधर देखे बच सकता है। और फिर बिहारीजी ने अपने मुरली की प्यारी धुन छेड़ दि।
रसखान अभी बचने की कोशिश ही कर रहे थे कि प्रभु के पाँव की नुपुर भी बजने लगी। मुरली और नूपुर की रुनझुन ने ऐसा जादू किया कि रसखान को अब अपने ऊपर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था। उस्तादजी की काला नाग वाली बात भी याद आ रही थी, अब वो करे तो क्या करें। मुरली तथा नुपुर की धुनें सुन उनका मन मुग्ध हुए जा रहा था। इतने में यमुना नदी आ गयी, और रसखान देखे बिना नहीं रह सके। वहाँ श्रीबिहारीजी अपनी प्रियाजी के साथ विराजमान थे। रसखान उनकी एक झलक पाकर मतवाले हो गए। मुरलीधर के युगल छवि के दर्शन पाकर वो भूल गए कि ख़ुद कहाँ हैं, और उनके उस्तादजी कहाँ गए। रसखान अपनी सुध-बुध खो बैठे, उन्हें अपना ध्यान ही नहीं रहा। वे ब्रज की रज में लोट पोट हो रहे थे, मुँह से उनके झाग निकलने लगा।
इधर-उधर वो पागलों की तरह श्रीबिहारीजी को ढूँढने लगे। उनकी साँवली छवि उनके आँखो से हट नहीं रही थी।
परन्तु प्रभु अपनी लीला कर अन्तर्ध्यान हो गए। सखी ! 
 मोय कारौ नाग डस्यौ....
व्यापि गयौ विष नस-नस बरबस, 
उर तैं जगत खस्यौ॥
बिस बगराय, भुजंगम भीषन मृदु मधु हँसी हँस्यौ।
हँसतहिं विष अति भयौ मधुर सो, अवसर पाइ धँस्यौ॥
विष भयौ अमिय, नाग पुनि मोहन,मधु मधुरिमा लस्यौ।
करत किलोल कलित अकलन, रस-सुधा-स्रोत निकस्यौ॥
स्याम-मनहि सौं एकमेक मन अमन होइ बिकस्यौ।
कौ जानै कब लौं यौं मोहन मो महँ रह्यौ धँस्यौ॥
जाके नाम कटत भव-बन्धन, सो स्वयमेव ड्डँस्यौ।
ह्वै परतंत्र, सुतंत्र परम सो अपनेहि बंध कस्यौ॥
सखी ! मोय कारौ नाग डस्यौ.... 

थोड़ी दूर जाकर जब उस्तादजी ने पीछे मुड़कर देखा, उन्हें रसखान कहीं नज़र नहीं आया, वो वापस पीछे आए और रसखान की दशा देखकर समझ गए कि उन्हें कालिया नाग ने डँस लिया है, और अब यह रसखान हमारे किसी काम के नहीं हैं। उस्तादजी रसखान को वहीं छोड़कर हज पर चले गए। रसखान को जब होश आया तो फिर वो कृष्ण को ढूँढने लगे। आस-पास आने-जाने वाले मुसाफ़िर से पूछने लगे तुमने कहीं साँवला सलोना, जिनके हाथ में मुरली है, साथ में उनकी बेगम (श्री राधा जी) भी हैं, कही देखा है, वो कहाँ रहता है? किसी भक्त ने उनकी विरह दशा देखकर श्री बाँकेबिहारी जी के मंदिर का पता बता दिया। रसखान मंदिर गये, किन्तु उनकी दशा देखकर मंदिर के अंदर पुजारी ने प्रवेश करने नहीं दिया। वो वहीं मंदिर के बाहर तीन दिनों तक भूखे-प्यासे पड़े रहे। तीसरे दिन बाँकेबिहारीजी अपना प्रिय दूध-भात चाँदी के कटोरे में लेकर आए और उन्हें अपने हाथों से खिलाया।
जय जय श्री बाँकेबिहारी लाल की..











0 comments:

Post a Comment

Copyright © 2015-2017 श्री लक्ष्मी-नारायण | Designed With By Blogger Templates
Scroll To Top