श्री सनातन जी और पारस पत्थर
श्री सनातन जी और पारस पत्थर |
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सनातन जी अपना सब कुछ दान करके महाप्रभु के सेवक बन गये थे और उनकी आज्ञा से वृन्दावन मे भक्ति का प्रचार करते थे.सनातन जी एक दिन यमुना में स्नान करने के निमित्त जा रहे थे रास्ते में एक पारस पत्थर का टुकडा़ इन्हें पडा़ मिला, इन्होने उसे वही धूलि में ढक दिया.
अकस्मात उसी दिन एक ब्राहाण उनके पास आकर धन की याचना करने लगा इन्होने बहुत कहा -भाई हम भिक्षुक है माँगकर खाते है,भला हमारे पास धन कहाँ है किन्तु वह कहने लगा – महाराज! मैंने धन की कामना से ही अनेको वर्षो तक शिव जी की आराधना की,उन्होंने संतुष्ट होकर रात्रि के समय स्वप्न में मुझसे कहा -हे ब्राहाण तू जिस इच्छा से मेरा पूजन कर रहा है वह इच्छा तेरी वृन्दावन में सनातन जी गोस्वामी के समीप जाने से पूरी होगी बस उन्ही के स्वपन से में आप की शरण में आया हूँ.
इस पर सनातन जी को उस पारस पत्थर की याद आई उन्होंने कहा -अच्छी बात है मेरे साथ यमुना किनारे आओ,दूर से ही इशारा करते हुए उन्होंने कहा -यहाँ कही पारस पत्थर है उस ब्राहमण ने बहुत ढूँढा,थोड़ी देर बाद उसे पारस पत्थर मिल गया उसी समय उसने एक लोहे का टुकड़े से उसे छुआकर उसकी परीक्षा की देखते ही देखते लोहा सोना बन गया ब्राहाण प्रसन्न होकर घर चल दिया.
वह आधे रास्ते तक पँहुचा की उसका विचार एकदम बदल गया उसने सोचा जो महापुरुष घर-घर जाकर टुकडे माँगकर खाता है और संसार की इतनी बहुमूल्य समझी जाने वाली इस मणि को स्पर्श तक नहीं करता अवश्य ही उसके पास इस असाधारण पत्थर से बढकर भी कोई और वस्तु है मै तो उनसे उसी को प्राप्त करुँगा !
इस पारस को देकर तो उन्होंने मुझे बहलाया है, यह सोच कर वह लौटकर फिर इनके समीप आया और चरणों में गिरकर रो-रोकर अपनी मनोव्यथा सुनाई उसके सच्चे वैराग्य को देखकर इन्होने पारस को यमुना जी में फिकवा दिया और उसे अमूल्य हरिनाम का उपदेश किया जिससे वह कुछ काल में ही संत बन गया.
किसी ने सच ही कहा है –
“ पारस में अरु संत में, संत अधिक कर मान |
वह लोहा सोना करै यह करै आपु समान ||”
!! जय जय श्री राधे !
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