Tuesday, November 10, 2015

कर्म पुराण



कर्म पुराण

कर्म पुराण

पवित्र ‘कूर्मपुराण’ ब्रह्म वर्ग के अंतर्गत आता है। इस पुराण में चारों वेदोंका श्रेष्‍ठ सार निहित है। समुद्र-मंथन के समय मंदराचलगिरि को समुद्र में स्थिर रखने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर भगवान् विष्‍णु ने कूर्मावतार धारण किया था। तत्‍पश्‍चात् उन्‍होंने अपने कूर्मावतार में राजा इन्‍द्रद्युमन को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का गूढ़ रहस्‍य प्रदान किया था उनके ज्ञानयुक्‍त उपदेश को इस पुराण में संकलित किया है इसलिए इस पुराण को ‘कूर्मपुराण’ कहा गया है। यद्यपि कूर्म पुराण एक वैष्‍णव प्रधान पुराण है, तथापि इसमें शैव तथा शाक्‍त मत की भी विस्‍तृत चर्चा की गई है। इस पुराण में पुराणों के पांचों प्रमुख लक्षणों सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्‍वंतर एवं वंशनुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्‍तृत विवेचन किया गया है।

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