आत्मा
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आत्मा |
भगवान विष्णु
के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं:
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:।अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०॥
(यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।)
किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड्ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य के कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म के प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है।
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